समस्त रचनाकारों को मेरा शत शत नमन .....

शुक्रवार, 11 मार्च 2011

ठूँठ {सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"}

ठूँठ यह है आज!
गई इसकी कला,
गया है सकल साज!

अब यह वसन्त से होता नहीं अधीर,
पल्लवित झुकता नहीं अब यह धनुष-सा,
कुसुम से काम के चलते नहीं हैं तीर,
छाँह में बैठते नहीं पथिक आह भर,
झरते नहीं यहाँ दो प्रणयियों के नयन-तीर,
केवल वृद्ध विहग एक बैठता कुछ कर याद।

2 टिप्‍पणियां:

ravindra ने कहा…

i guess this is not the complete poem.......... could you post the full version

Mani Singh ने कहा…

my dear friends thanks for your support i will try my best to publish comleate version belong u. if u have this compleate version.then u help me post this.