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सोमवार, 14 मार्च 2011

उल्लास { सुभद्राकुमारी चौहान}

शैशव के सुन्दर प्रभात का
मैंने नव विकास देखा।
यौवन की मादक लाली में
जीवन का हुलास देखा।।

जग-झंझा-झकोर में
आशा-लतिका का विलास देखा।
आकांक्षा, उत्साह, प्रेम का
क्रम-क्रम से प्रकाश देखा।।

जीवन में न निराशा मुझको
कभी रुलाने को आयी।
जग झूठा है यह विरक्ति भी
नहीं सिखाने को आयी।।

अरिदल की पहिचान कराने
नहीं घृणा आने पायी।
नहीं अशान्ति हृदय तक अपनी
भीषणता लाने पायी।।

सुभद्राकुमारी चौहान


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