- ठूँठ यह है आज!
- गई इसकी कला,
- गया है सकल साज!
- ठूँठ यह है आज!
अब यह वसन्त से होता नहीं अधीर,
पल्लवित झुकता नहीं अब यह धनुष-सा,
कुसुम से काम के चलते नहीं हैं तीर,
छाँह में बैठते नहीं पथिक आह भर,
झरते नहीं यहाँ दो प्रणयियों के नयन-तीर,
केवल वृद्ध विहग एक बैठता कुछ कर याद।
2 टिप्पणियां:
i guess this is not the complete poem.......... could you post the full version
my dear friends thanks for your support i will try my best to publish comleate version belong u. if u have this compleate version.then u help me post this.
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