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सोमवार, 14 मार्च 2011

अब वे मेरे गान कहाँ हैं

अब वे मेरे गान कहाँ हैं!

टूट गई मरकत की प्याली,
लुप्त हुई मदिरा की लाली,
मेरा व्याकुल मन बहलानेवाले अब सामान कहाँ हैं!
अब वे मेरे गान कहाँ हैं!

जगती के नीरस मरुथल पर,
हँसता था मैं जिनके बल पर,
चिर वसंत-सेवित सपनों के मेरे वे उद्यान कहा हैं!
अब वे मेरे गान कहाँ हैं!

किस पर अपना प्यार चढाऊँ?
यौवन का उद्गार चढाऊँ?
मेरी पूजा को सह लेने वाले वे पाषाण कहाँ है!
अब वे मेरे गान कहाँ हैं!

हरिवंशराय बच्चन


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