समस्त रचनाकारों को मेरा शत शत नमन .....

सोमवार, 14 मार्च 2011

अपराजिता

हारीं नहीं, देख, आँखें--

परी नागरी की;

नभ कर गंई पार पाखें

परी नागरी की।
तिल नीलिमा को रहे स्नेह से भर
जगकर नई ज्योति उतरी धरा पर,
रँग से भरी हैं, हरी हो उठीं हर

तरु की तरुण-तान शाखें;

परी नागरी की--

हारीं नहीं, देख, आँखें।

सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"


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