समस्त रचनाकारों को मेरा शत शत नमन .....

सोमवार, 14 मार्च 2011

आशा आशा मरे

आशा आशा मरे
लोग देश के हरे!

देख पड़ा है जहाँ,
सभी झूठ है वहाँ,
भूख-प्यास सत्य,

होंठ सूख रहे हैं अरे!


आस कहाँ से बंधे?
सांस कहाँ से सधे?
एक एक दास,

मनस्काम कहाँ से सरे?


रूप-नाम हैं नहीं,
कौन काम तो सही?
मही-गगन एक,

कौन पैर तो यहाँ धरे?
सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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