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शुक्रवार, 11 मार्च 2011

वरदान {महादेवी वर्मा}

तरल आँसू की लड़ियाँ गूँथ
इन्हीं ने काटी काली रात,
निराशा का सूना निर्माल्य
चढ़ाकर देखा फीका प्रात।

इन्हीं पलकों ने कंटक हीन
किया था वह मारग बेपीर,
जहाँ से छूकर तेरे अंग
कभी आता था मंद समीर!

सजग लखतीं थी तेरी राह
सुलाकर प्राणों में अवसाद;
पलक प्यालों से पी पी देव!
मधुर आसव सी तेरी याद।

अशन जल का जल ही परिधान
रचा था बूँदों में संसार,
इन्हीं नीले तारों में मुग्ध
साधना सोती थी साकार

आज आये हो हे करुणेश!
इन्हें जो तुम देने वरदान,
गलाकर मेरे सारे अंग
करो दो आँखों का निर्माण!

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