अंधड़ था, अंधा नहीं, उसे था दीख रहा,
वह तोड़-फोड़ मनमाना हँस-हँस सीख रहा,
पीपल की डाल हिली, फटी, चिंघाड़ उठी,
आँधी के स्वर में वह अपना मुँह फाड़ उठी।
- उड़ गये परिन्दे कहीं,
- साँप कोटर तज भागा,
- लो, दलक उठा संसार,
- नाश का दानव जागा।
- उड़ गये परिन्दे कहीं,
कोयल बोल रही भय से जल्दी-जल्दी,
पत्तों की खड़-खड़ से शान्ति वनों से चल दी,
युगों युगों बूढ़े, इस अन्धड़ में देखो तो,
कितनी दौड, लगन कितनी, कितना साहस है,
इसे रोक ले, कहो कि किस साहस का वश है?
- तिसपर भी मानव जीवित है,
- हँसता है मनचाहा,
- भाषा ने धिक्कारा हो,
- पर गति ने उसे सराहा!
- तिसपर भी मानव जीवित है,
बन्दर-सा करने में रत है, वह लो हाई जम्प!
यह निर्माता हँसा और वह निकल गया भूकम्प।
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