गरज गरज घन अंधकार में गा अपने संगीत,
- बन्धु, वे बाधा-बन्ध-विहीन,
- बन्धु, वे बाधा-बन्ध-विहीन,
आखों में नव जीवन की तू अंजन लगा पुनीत,
- बिखर झर जाने दे प्राचीन।
- बिखर झर जाने दे प्राचीन।
बार बार उर की वीणा में कर निष्ठुर झंकार
- उठा तू भैरव निर्जर राग,
- उठा तू भैरव निर्जर राग,
बहा उसी स्वर में सदियों का दारुण हाहाकार
- संचरित कर नूतन अनुराग।
- संचरित कर नूतन अनुराग।
बहता अन्ध प्रभंजन ज्यों, यह त्यों ही स्वर-प्रवाह
- मचल कर दे चंचल आकाश,
- मचल कर दे चंचल आकाश,
उड़ा उड़ा कर पीले पल्लव, करे सुकोमल राह,--
- तरुण तरु; भर प्रसून की प्यास।
- तरुण तरु; भर प्रसून की प्यास।
काँपे पुनर्वार पृथ्वी शाखा-कर-परिणय-माल,
- सुगन्धित हो रे फिर आकाश,
- सुगन्धित हो रे फिर आकाश,
पुनर्वार गायें नूतन स्वर, नव कर से दे ताल,
- चतुर्दिक छा जाये विश्वास।
- चतुर्दिक छा जाये विश्वास।
मन्द्र उठा तू बन्द-बन्द पर जलने वाली तान,
- विश्व की नश्वरता कर नष्ट,
- विश्व की नश्वरता कर नष्ट,
जीर्ण-शीर्ण जो, दीर्ण धरा में प्राप्त करे अवसान,
- रहे अवशिष्ट सत्य जो स्पष्ट।
- रहे अवशिष्ट सत्य जो स्पष्ट।
ताल-ताल से रे सदियों के जकड़े हृदय कपाट,
- खोल दे कर कर-कठिन प्रहार,
- खोल दे कर कर-कठिन प्रहार,
आये अभ्यन्तर संयत चरणों से नव्य विराट,
- करे दर्शन, पाये आभार।
- करे दर्शन, पाये आभार।
छोड़, छोड़ दे शंकाएँ, रे निर्झर-गर्जित वीर!
- उठा केवल निर्मल निर्घोष;
- उठा केवल निर्मल निर्घोष;
देख सामने, बना अचल उपलों को उत्पल, धीर!
- प्राप्त कर फिर नीरव संतोष!
- प्राप्त कर फिर नीरव संतोष!
भर उद्दाम वेग से बाधाहर तू कर्कश प्राण,
- दूर कर दे दुर्बल विश्वास,
- दूर कर दे दुर्बल विश्वास,
किरणों की गति से आ, आ तू, गा तू गौरव-गान,
- एक कर दे पृथ्वी आकाश।
- सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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