प्रभू मोरे अवगुण चित न धरो ।
समदरसी है नाम तिहारो चाहे तो पार करो ॥
एक लोहा पूजा में राखत एक घर बधिक परो ।
पारस गुण अवगुण नहिं चितवत कंचन करत खरो ॥
एक नदिया एक नाल कहावत मैलो ही नीर भरो ।
जब दौ मिलकर एक बरन भई सुरसरी नाम परो ॥
एक जीव एक ब्रह्म कहावे सूर श्याम झगरो ।
अब की बेर मोंहे पार उतारो नहिं पन जात टरो ॥
2.
अखियाँ हरि दर्शन की प्यासी ।
देखो चाहत कमल नयन को, निस दिन रहत उदासी ॥
केसर तिलक मोतिन की माला, वृंदावन के वासी ।
नेहा लगाए त्यागी गये तृण सम, डारि गये गल फाँसी ॥
काहु के मन की कोऊ का जाने, लोगन के मन हाँसी ।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस बिन लेहों करवत कासी ॥
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