समस्त रचनाकारों को मेरा शत शत नमन .....

शुक्रवार, 11 मार्च 2011

सूरदास के पद

1.

प्रभू मोरे अवगुण चित न धरो ।

समदरसी है नाम तिहारो चाहे तो पार करो ॥

एक लोहा पूजा में राखत एक घर बधिक परो ।

पारस गुण अवगुण नहिं चितवत कंचन करत खरो ॥

एक नदिया एक नाल कहावत मैलो ही नीर भरो ।

जब दौ मिलकर एक बरन भई सुरसरी नाम परो ॥

एक जीव एक ब्रह्म कहावे सूर श्याम झगरो ।

अब की बेर मोंहे पार उतारो नहिं पन जात टरो ॥


2.

अखियाँ हरि दर्शन की प्यासी ।

देखो चाहत कमल नयन को, निस दिन रहत उदासी ॥

केसर तिलक मोतिन की माला, वृंदावन के वासी ।

नेहा लगाए त्यागी गये तृण सम, डारि गये गल फाँसी ॥

काहु के मन की कोऊ का जाने, लोगन के मन हाँसी ।

सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस बिन लेहों करवत कासी ॥

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