राजा बसन्त, वर्षा ऋतुओं की रानी,
लेकिन, दोनों की कितनी भिन्न कहानी !
राजा के मुख में हँसी, कंठ में माला,
रानी का अन्तर विकल, दृगों में पानी ।
- डोलती सुरभि राजा-घर कोने-कोने,
- परियाँ सेवा में खड़ी सजाकर दोने।
- खोले अलकें रानी व्याकुल-सी आई,
- उमड़ी जानें क्या व्यथा , लगी वह रोने।
- डोलती सुरभि राजा-घर कोने-कोने,
रानी रोओ, पोंछो न अश्रु अन्चल से,
राजा अबोध खेलें कचनार-कमल से।
राजा के वन में कैसे कुसुम खिलेंगे,
सींचो न धरा यदि तुम आँसू के जल से?
- लेखनी लिखे, मन में जो निहित व्यथा है,
- रानी की सब दिन गीली रही कथा है ।
- त्रेता के राजा क्षमा करें यदि बोलूँ,
- राजा-रानी की युग से यही प्रथा है।
- लेखनी लिखे, मन में जो निहित व्यथा है,
विधु-संग-संग चाँदनी खिली वन-वन में,
सीते ! तुम तो खो रही चरण-पूजन में।
तो भी, यह अग्नि-विधान! राम निष्ठुर हैं;
रानी ! जनमी थीं तुम किस अशुभ लगन में?
- नृप हुए राम, तुमने विपदाएँ झेलीं;
- थीं कीर्ति उन्हें प्रिय, तुम वन गई अकेली।
- वैदेहि ! तुम्हें माना कलंकिनी प्रिय ने,
- रानी ! करुणा की तुम भी विषम पहेली।
- नृप हुए राम, तुमने विपदाएँ झेलीं;
रो-रो राजा की कीर्तिलता पनपाओ,
रानी ! आयसु है, लिये गर्भ बन जाओ।
सूखो सरयू ! साकेत ! भस्म हो; रानी !
माँ के उर में छिप रहो, न मुख दिखलाओ।
- औ’ यहाँ कौन यह विधु की मलिन कला-सी,
- संध्या-सुहाग-सी, तेज-हीन चपला-सी?
- अयि मूर्तिमती करुणे द्वापर की ! बोलो,
- तुम कौन मौन क्षीणा अलका-अबला-सी ?
- औ’ यहाँ कौन यह विधु की मलिन कला-सी,
अयि शकुन्तले ! कैसा विषाद आनन में?
रह-रह किसकी सुधि कसक रही है मन में?
प्याली थी वह विष-भरी, प्रेम में भूली,
पी गई जिसे भोली तुम खता-भवन में।
- माधवी-कुंज की मादक प्रणय-कहानी,
- नयनों में है साकार आज बन पानी।
- पुतली में रच तसवीर निठुर राजा की
- रानी रोती फिरती वन-वन दीवानी।
- माधवी-कुंज की मादक प्रणय-कहानी,
राजा हँसते हैं, हँसे, तुम्हें रोना है,
मालिन्य मुकुट का भी तुमको धोना है;
रानी ! विधि का अभिशाप यहाँ ऊसर में
आँसू से मोती-बीज तुम्हें बोना है।
- किरणों का कर अवरोध उड़ा अंचल है,
- छाया में राजा मना रहा मंगल है।
- रानी ! राजा को ज्ञात न, पर अनजाने,
- भ्रू-इंगित पर वह घूम रहा पल-पल है।
- किरणों का कर अवरोध उड़ा अंचल है,
वह नव वसन्त का कुसुम, और तुम लाली,
वह पावस-नभ, तुम सजल घटा मतवाली;
रानी ! राजा की इस सूनी दुनिया में
बुनती स्वप्नों से तुम सोने की जाली।
- सुख की तुम मादक हँसी, आह दुर्दिन की,
- सुख-दुख, दोनों में, विभा इन्दु अमलिन की।
- प्राणों की तुम गुंजार, प्रेम की पीड़ा,
- रानी ! निसि का मधु, और दीप्ति तुम दिन की।
- सुख की तुम मादक हँसी, आह दुर्दिन की,
पग-पग पर झरते कुसुम, सुकोमल पथ हैं,
रानी ! कबरी का बन्ध तुम्हारा श्लथ है,
झिलमिला रही मुसकानों से अँधियाली,
चलता अबाध, निर्भय राजा का रथ है।
- छिटकी तुम विद्युत्-शिखा, हुआ उजियाला,
- तम-विकल सैनिकों में संजीवन डाला;
- हल्दीघाटी हुंकार उठी जब रानी !
- तुम धधक उठी बनकर जौहर की ज्वाला।
- छिटकी तुम विद्युत्-शिखा, हुआ उजियाला,
राजा की स्मृति बन ज्योति खिली जौहर में,
असि चढ़ चमकी रानी की विभा समर में;
भू पर रानी जूही, गुलाब राजा है;
राजा-रानी हैं सूर्य-सोम अम्बर में।
१९३५
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