कंचन थाल सजा सौरभ से
ओ फूलों की रानी!
अलसाई-सी चली कहो,
करने किसकी अगवानी?
- वैभव का उन्माद, रूप की
- यह कैसी नादानी!
- उषे! भूल जाना न ओस की
- कारुणामयी कहानी।
- वैभव का उन्माद, रूप की
ज़रा देखना गगन-गर्भ में
तारों का छिप जाना;
कल जो खिले आज उन फूलों
का चुपके मुरझाना।
- रूप-राशि पर गर्व न करना,
- जीवन ही नश्वर है;
- छवि के इसी शुभ्र उपवन में
- सर्वनाश का घर है।
- रूप-राशि पर गर्व न करना,
सपनों का यह देश सजनि!
किसका क्या यहाँ ठिकाना?
पाप-पुण्य का व्यर्थ यहाँ
बुनते हम ताना-बाना।
- प्रलय-वृन्त पर डोल रहा है
- यह जीवन दीवाना,
- अरी, मौत का निःश्वासों से
- होगा मोल चुकाना।
- प्रलय-वृन्त पर डोल रहा है
सर्वनाश के अट्टहास से
गूँज रहा नभ सारा;
यहाँ तरी किसकी छू सकती
वह अमरत्व-किनारा?
- एक-एक कर डुबो रहा
- नावों को प्रलय अकेला,
- और इधर तट पर जुटता है
- वैभव-मद का मेला।
- एक-एक कर डुबो रहा
सृष्टि चाट जाने को बैठी
निर्भय मौत अकेली;
जीवन की नाटिका सजनि! है
जग में एक पहेली।
- यहाँ देखता कौन कि यह
- नत-मस्तक, वह अभिमानी?
- उठता एक हिलोर, डूबते
- पंडित औ अज्ञानी।
- यहाँ देखता कौन कि यह
यह संग्रह किस लिए? हाय,
इस जग में क्या अक्षय है?
अपने क्रूर करों से छूता
सब को यहाँ प्रलय है।
- लो, वह देखो, वीर सिकन्दर
- सारी दुनिया छोड़,
- दो गज़ ज़मीं ढूँढ़ने को
- चल पड़ा कब्र की ओर।
- लो, वह देखो, वीर सिकन्दर
सोमनाथ-मंदिर का सोना
ताक रहा है राह,
ओ महमूद! कब्र से उठकर
पहनो जरा सनाह।
- सुनते नहीं रूस से लन्दन
- तक की यह ललकार?
- बोनापार्ट! हिलेना में
- सोये क्यों पाँव पसार?
- सुनते नहीं रूस से लन्दन
और, गाल के फूलों पर क्यों
तू भूली अलबेली?
बिना बुलाये ही आती
होगी वह मौत सहेली।
- सुंदरता पर गर्व न करना
- ओ स्वरूप की रानी!
- समय-रेत पर उतर गया
- कितने मोती का पानी।
- सुंदरता पर गर्व न करना
रंथी-रथ से उतर चिता
का देखोगी संसार,
जरा खोजना उन लपटों में
इस यौवन का सार।
- प्रिय-चुम्बित यह अधर और
- उन्नत उरोज सुकुमार सखी!
- आज न तो कल श्वान-शृगालों
- के होंगे आहार सखी!
- प्रिय-चुम्बित यह अधर और
दो दिन प्रिय की मधुर सेज पर
कर लो प्रणय-विहार सखी?
चखना होगा तुम्हें एक दिन
महाप्रलय का प्यार सखी!
- जीवन में है छिपा हुआ
- पीड़ाओं का संसार सखी!
- मिथ्या राग अलाप रहे हैं
- इस तंत्री के तार सखी!
- जीवन में है छिपा हुआ
जिस दिन माँझी आयेगा
ले चलने को उस पार सखी!
यह मोहक जीवन देना
होगा उसको उपहार सखी!
- जीवन के छोटे समुद्र में
- बसी प्रलय की ज्वाला,
- अमिय यहीं है और यहीं
- वह प्राण-घातिनी हाला।
- जीवन के छोटे समुद्र में
इस चाँदनी बाद आयेगा
यहाँ विकट अँधियाला,
यही बहुत है, छलक न पाया
जो अब तक यह प्याला।
- हरा-भरा रह सका यहाँ पर
- नहीं किसी का बाग सखी!
- यहाँ सदा जलती रहती है
- सर्वनाश की आग सखी!
- हरा-भरा रह सका यहाँ पर
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