समस्त रचनाकारों को मेरा शत शत नमन .....

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

मुक्ति

तोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारा
पत्थर, की निकलो फिर,

गंगा-जल-धारा!
गृह-गृह की पार्वती!

पुनः सत्य-सुन्दर-शिव को सँवारती

उर-उर की बनो आरती!--
भ्रान्तों की निश्चल ध्रुवतारा!--
तोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारा!

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