समस्त रचनाकारों को मेरा शत शत नमन .....

मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

पंचवटी पृष्ठ १२

पक्षपातमय सानुरोध है, जितना अटल प्रेम का बोध,

उतना ही बलवत्तर समझो, कामिनियों का वैर-विरोध।

होता है विरोध से भी कुछ, अधिक कराल हमारा क्रोध,

और, क्रोध से भी विशेष है, द्वेष-पूर्ण अपना प्रतिशोध॥


देख क्यों न लो तुम, मैं जितनी सुन्दर हूँ उतनी ही घोर,

दीख रही हूँ जितनी कोमल, हूँ उतनी ही कठिन-कठोर!"

सचमुच विस्मयपूर्वक सबने, देखा निज समक्ष तत्काल-

वह अति रम्य रूप पल भर में, सहसा बना विकट-कराल!


सबने मृदु मारुत का दारुण, झंझा नर्तन देखा था,

सन्ध्या के उपरान्त तमी का, विकृतावर्तन देखा था!

काल-कीट-कृत वयस-कुसुम-का, क्रम से कर्तन देखा था!

किन्तु किसी ने अकस्मात् कब, यह परिवर्तन देखा था!


गोल कपोल पलटकर सहसा, बने भिड़ों के छत्तों-से,

हिलने लगे उष्ण साँसों में, ओंठ लपालप-लत्तों से!

कुन्दकली-से दाँत हो गये, बढ़ बारह की डाढ़ों से,

विकृत, भयानक और रौद्र रस, प्रगटे पूरी बाढ़ों-से?


जहाँ लाल साड़ी थी तनु में, बना चर्म का चीर वहाँ,

हुए अस्थियों के आभूषण, थे मणिमुक्ता-हीर जहाँ!

कन्धों पर के बड़े बाल वे, बने अहो! आँतों के जाल,

फूलों की वह वरमाला भी, हुई मुण्डमाला सुविशाल!


हो सकते थे दो द्रुमाद्रि ही, उसके दीर्घ शरीर-सखा;

देख नखों को ही जँचती थी, वह विलक्षणी शूर्पणखा!

भय-विस्मय से उसे जानकी, देख न तो हिल-डोल सकीं,

और न जड़ प्रतिमा-सी वे कुछ, रुद्र कण्ठ से बोल सकीं॥


अग्रज और अनुज दोनों ने, तनिक परस्पर अवलोका,

प्रभु ने फिर सीता को रोका, लक्ष्मण ने उसको टोका।

सीता सँभल गई जो देखी, रामचन्द्र की मृदु मुस्कान,

शूर्पणखा से बोले लक्ष्मण, सावधान कर उसे सुजान-


"मायाविनि, उस रम्य रूप का, था क्या बस परिणाम यही?

इसी भाँति लोगों को छलना, है क्या तेरा काम यही?

विकृत परन्तु प्रकृत परिचय से, डरा सकेगी तू न हमें,

अबला फिर भी अबला ही है, हरा सकेगी तू न हमें।


वाह्य सृष्टि-सुन्दरता है क्या, भीतर से ऐसी ही हाय!

जो हो, समझ मुझे भी प्रस्तुत, करता हूँ मैं वही उपाय।

कि तू न फिर छल सके किसी को, मारूँ तो क्या नारी जान,

विकलांगी ही तुझे करूँगा, जिससे छिप न सके पहचान॥


उस आक्रमणकारिणी के झट, लेकर शोणित तीक्ष्ण कृपाण,

नाक कान काटे लक्ष्मन ने, लिये न उसके पापी प्राण।

और कुरूपा होकर तब वह, रुधिर बहाती, बिललाती,

धूल उड़ाती आँधी ऐसी, भागी वहाँ से चिल्लाती॥

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