- (गीत)
- (गीत)
फिर सवाँर सितार लो!
बाँध कर फिर ठाट, अपने
- अंक पर झंकार दो!
- अंक पर झंकार दो!
शब्द के कलि-कल खुलें,
गति-पवन-भर काँप थर-थर
मीड़-भ्रमरावलि ढुलें,
गीत-परिमल बहे निर्मल,
- फिर बहार बहार हो!
- फिर बहार बहार हो!
स्वप्न ज्यों सज जाय
यह तरी, यह सरित, यह तट,
यह गगन, समुदाय।
कमल-वलयित-सरल-दृग-जल
- हार का उपहार हो!
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