अलि! इन भोली बातों को
अब कैसे भला छिपाऊँ!
इस आँख-मिचौनी से मैं
कह? कब तक जी बहलाऊँ?
अब कैसे भला छिपाऊँ!
इस आँख-मिचौनी से मैं
कह? कब तक जी बहलाऊँ?
- मेरे कोमल-भावों को
- तारे क्या आज गिनेंगे!
- कह? इन्हें ओस-बूँदों-सा
- फूलों में फैला आऊँ?
अपने ही सुख में खिल-खिल
उठते ये लघु-लहरों-से,
अलि! नाच-नाच इनके संग
इनमें ही मिल-मिल जाऊँ?
उठते ये लघु-लहरों-से,
अलि! नाच-नाच इनके संग
इनमें ही मिल-मिल जाऊँ?
- निज इंद्रधनुष-पंखों में
- जो उड़ते ये तितली-से,
- मैं भी फूलों के बन में
- क्या इनके सँग उड़ जाऊँ?
क्यों उछल चटुल-मीनों-से
मुख दिखला ये छिप जाते!
कह? डूब हृदय-सरसी में
इनके मोती चुन लाऊँ?
मुख दिखला ये छिप जाते!
कह? डूब हृदय-सरसी में
इनके मोती चुन लाऊँ?
- शशि की-सी कुटिल-कलाएँ
- देखो, ये निशि-दिन बढ़ते,
- अलि! उमड़-उमड़ सागर-सी
- अम्बर के तट छू आऊँ!
चुपके दुबिधा के तम में
ये जुगुनू-से उठ जलते,
कह, इनके नव-दीपों से
तारों का व्योम बनाऊँ?
ये जुगुनू-से उठ जलते,
कह, इनके नव-दीपों से
तारों का व्योम बनाऊँ?
- --ना, पीले-तारों-सी ही
- मेरी कितनी ही बातें
- कुम्हला चुपचाप गई हैं,
- मैं कैसे इन्हें भुलाऊँ!
रचनाकाल: १९२२
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