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रविवार, 17 जुलाई 2011

अंतर्लोक {सुमित्रानंदन पंत }

यह वह नव लोक
जहाँ भरा रे अशोक
सूक्ष्म चिदालोक!

शोभा के नव पल्लव
झरता नभ से मधुरव
शाश्वत का पा अनुभव
मिटता उर शोक,
स्वर्ग शांति ओक,

रूप रेख जग की लय
बनती वर देवालय,
श्रद्धा में बिकसित भय,
भक्ति मधुर सुख दुख द्वय!

बनता संशय
चिर विश्वास नहीं रोक
क्रांति को विलोक!

यह वह वर लोक
हृदय में उदय अशोक
सूक्ष्म चिदालोक!
स्वर्ण शांति ओक!

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