- दोनों ओर प्रेम पलता है।
- दोनों ओर प्रेम पलता है।
सखि, पतंग भी जलता है हा! दीपक भी जलता है!
सीस हिलाकर दीपक कहता--
’बन्धु वृथा ही तू क्यों दहता?’
पर पतंग पड़ कर ही रहता
- कितनी विह्वलता है!
- दोनों ओर प्रेम पलता है।
- कितनी विह्वलता है!
बचकर हाय! पतंग मरे क्या?
प्रणय छोड़ कर प्राण धरे क्या?
जले नही तो मरा करे क्या?
- क्या यह असफलता है!
- दोनों ओर प्रेम पलता है।
- क्या यह असफलता है!
कहता है पतंग मन मारे--
’तुम महान, मैं लघु, पर प्यारे,
क्या न मरण भी हाथ हमारे?
- शरण किसे छलता है?’
- दोनों ओर प्रेम पलता है।
- शरण किसे छलता है?’
दीपक के जलनें में आली,
फिर भी है जीवन की लाली।
किन्तु पतंग-भाग्य-लिपि काली,
- किसका वश चलता है?
- दोनों ओर प्रेम पलता है।
- किसका वश चलता है?
जगती वणिग्वृत्ति है रखती,
उसे चाहती जिससे चखती;
काम नहीं, परिणाम निरखती।
- मुझको ही खलता है।
- दोनों ओर प्रेम पलता है।
- मुझको ही खलता है।
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